शादी-सगाई, मौके होते हैं जब अपनों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। मामा-बुआ, चाचा-मौसा, दादी-नानी, हर किसी की जरूरत होती है, वरना शादी की रस्में अधूरी सी लगती हैं। वैसे भी भारतीय शादियों में रस्मों को ऐसे तैयार किया गया है कि हर रिश्ते को बराबर मान मिलता रहे। इसलिए हर रिश्ते की अहमियत को समझते हुए उसे बनाएं रखने की कोशिश करें।
भाई-मां की बारी
वैवाहिक रस्मों की शुरुआत लड़के की बरीक्षा, लड़की की ओली भराई और दोनों की सगाई से ही होती है। इन रस्मों में वधू के भाई द्वारा तिलक लगाकर सगाई की रस्म अदा की जाती है। इसी तरह लड़की की ओली भराई की रस्म लड़के की मां के द्वारा पूरी की जाती है। भारतीय परिवारों में बहू सास की उत्तराधिकारी मानी जाती है। इसी तरह फेरे के वक्त वधू का भाई नवदंपति के हाथों में खील देता है, जिसे वह विवाह की वेदी में अर्पित करती है। कन्यादान के दौरान भी माता-पिता की तरह भाई की भूमिका बेहद अहम होती है। विवाह के बाद पगफेरे की रस्म के लिए वधू का भाई ही उसकी ससुराल जाता है और वह उसी के साथ पहली बार मायके आती है।
बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में शादी के रोज वर-वधू को खिलाने के लिए विशेष भोजन तैयार करने का काम भी बुआ ही करती है। इसी तरह से उत्तर भारत में बंदनवार सजाने की जिम्मेदारी वर या वधू के फूफा को निभानी होती है।
बहन-बहनोई नहीं तो कैसी खुशी
दूल्हे की बारात जीजा जी के बिना तो निकल ही नहीं सकती और दुल्हन का हर काम बहन के बिना अधूरा है। अपने साले का सहरा सजाना हो या जीजा जी से जूते चुराई के पैसे लेने हो, बहन-बहनोई की अपनी-अपनी उपयोगिता होती है। इनका खास काम माहौल को खुशनुमा बनाएं रखना है।
मामा से खास है रिश्ता
मामा की भूमिका लड़के-लड़की की शादी में बराबर ही होती है। जब तक मामा के घर से आया भात न मिले तब तक विवाह होना संभव ही नहीं। मामा पक्ष की ओर से वर-वधू सहित उनके परिवार के लोगों के लिए कपड़े, गहने, फल, मिठाइयां, मेवे आदि भेजे जाते हैं। पंजाब में शादी के एक रोज पहले वधू को चूड़ा पहनाने की रस्म भी मामा-मामी द्वारा ही निभाई जाती है।
बच्चों का भी अपना सम्मान
याद है न हमेशा दूल्हे के साथ किसी खूबसूरत और घर के छोटे-बच्चे को बिठाया जाता है। माना जाता है कि बच्चे के बैठने से बहू पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी तरह से परिवार के लगभग सभी रिश्तों को विवाह के दौरान किसी न किसी परंपरा से जोड़ा जाता है।