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जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2018: नगर भ्रमण पर निकलने वाले हैं भगवान जगन्नाथ

उड़ीसा में इन दिनों जश्न का माहौल है. शहर की गलियां साफ हो रही हैं, लाइटिंग और झूमर सजाए जा रहे हैं, फूलों से भरी गाड़ियों की आमद होने लगी है. देश के अलग—अलग हिस्सों से लोग यहां पहुंच रहे हैं और इस वक्त ​अधिकांश होटल और धर्मशालाएं भर चुकी हैं.

यह सारी तैयारी हो रही है 14 जुलाई को निकलने वाली ऐतिहासिक जगन्नाथ रथ यात्रा की. विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी धाम में विगत दो माह से विशाल रथ बनाएं जा रहे हैं. इस समय भगवान जगन्नाथ स्वामी एकांतवास पर जा चुके हैं और 14 जून को बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ नगर यात्रा पर निकलेंगे. उनके आने से पहले शहर की गलियों को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है.

Bhagwan jagannath
Bhagwan jagannath(Pic:medium.com)

ऐसा है रथयात्रा का इतिहास

पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में जब कृष्ण द्वारका में रहा करते थे तब उनकी बहन सुभ्रद भी उनके साथ ही रह रहीं थीं. हालांकि नगरवासियों ने उन्हें कभी नहीं देखा था. एक बार प्रज्ञा की इच्छा का आदर करने के लिए श्रीकृष्ण ने विशाल रथ यात्रा का आयोजन किया. जिसमें उनके साथ भाई बलराम और सुभद्रा भी शामिल हुए. यह आयोजिन विशेष तौर पर सुभद्रा का प्रजा से परि​चय करवाने के लिए हुआ था. बस तभी से लेकर आज तक जगन्नाथ की रथ यात्रा हर साल निकल रही है.

Puri Rath Yatra
Puri Rath Yatra(Pic:wp.com)

इसलिए खास होती है यात्रा
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में श्री कृष्ण को भगवान जगन्नाथ कहा जाता है. यात्रा में उनके साथ बलराम और सुभ्रदा के रथ भी तैयार होते हैं. जगन्नाथजी के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ , बलराम जी के रथ को  ‘तलध्वज’ और सुभद्रा जी का रथ “देवदलन” व “पद्मध्वज’ कहा जाता है.

आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की सुबह रथ यात्रा महोत्सव शुरू होता है. जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों को गर्भ ग्रह से निकालकर रथ पर रखा जाता है और फिर जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक खिंच कर लाया जाता है. इस विशाल रथ को खींचने के लिए सैकड़ों लोग लगते हैं.

शाम तक रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं. यह भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहा जाता है. जहां वे सात दिन विराजते हैं. कहा जाता है कि इसी स्थान पर यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था.

एक और पौरा​णिक कथा है कि रथयात्रा के तीसरे दिन देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए यहां आती हैं लेकिन द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर रथ का पहिया तोड़ देती है. इसके बाद वे ‘हेरा गोहिरी साही पुरी’ नामक एक मुहल्ले में लौट जाती हैं. यहां लक्ष्मी देवी का विशाल मंदिर स्थित है. यहां भगवान जगन्नाथ द्वारा रुष्ट देवी लक्ष्मी मनाने की परंपरा भी है.

आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. देवी-देवताओं के लिए मंदिर के द्वार एकादशी को खोले जाते हैं. फिर विधिपूर्वक उनका पूजन होता है और उन्हें पुन: उनके स्थान पर विराजित किया जाता है.

Jagannath Puri temple
Jagannath Puri temple(Pic:dailymail.co.uk)

हर हिंदू के मन की कामना

रथों की खास बात यह है कि इन्हें नीम की लकड़ियों से तैयार किया जाता है. भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है. इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है.

भगवान जगन्नाथ के विराजने से पहले ‘सोने की झाड़ू’ से रथ, मण्डप और रास्ते को साफ़ किए जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि हजारों लाखों की संख्या वाली इस विशाल शोभायात्रा में लोग रथ की रस्सी को कम से कम एक बार छूने की कोशिश जरूर करते हैं.

यात्रा पूरी होने पर हर साल, रथ तोड़ दिए जाते हैं, इसकी लकड़ी अवशेष और प्रतिकृति के रूप में बेची जाती है. हर हिन्दू अपने जीवन में कम से कम एक बार जगन्नाथ पुरी की यात्रा जरूर करना चाहता है.

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