ऐसा ये अपना रिश्ता है
दूर होके भी पास थी ऐसे
बुत मै कोई जाँ थी जैसे
हमराज बनी, अनजाने से
कहलाता क्या, ये रिश्ता है?
मन मै एक विश्वास सी बनके
याद तुम्हारी आंख से छलके
दिल पूछे अनजान सा बनके
तुमसे ये कैसा रिश्ता है?
तुम नाम वहां जब लेते हो.
दिल जैसे ये सुन लेता हो
इस रिश्ते को कोई नाँ नहीं
ये दिल से दिल का रिश्ता है
बेनाम सा रिश्ता यूँ पनपा है
फूल से भंवरा ज्यूँ लिपटा है
पलके आंखे, दिया और बाती
ऐसा ये अपना रिश्ता है.!!!!
शैलेश जम्लोकि
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हो जाते कभी क्यूँ बहरे रिश्ते
आसमान से ऊँचे हरदम,
और सागर से गहरे रिश्ते.
दिल के अंधेरे मिटा देते हैं,
होते हैं बड़े सुनहरे रिश्ते.
खून के रिश्तों से बड़कर,
होते है दिल के गहरे रिश्ते .
मेंहदी रिश्ते,पायल रिश्ते
और होते हैं गजरे रिश्ते
रिश्तों के निगेहबान है रिश्ते
रिश्तों पे होते पहरे रिश्ते
कभी अंधे,गूंगे,बेसहारा और
हो जाते कभी क्यूँ बहरे रिश्ते ?
सुरेन्दर कुमार ‘अभिन्न’
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रिश्ते कुछ खास होते हैं
रिश्ते कुछ खास होते हैं
शायद उनकी डोर उस प्रभु के पास होती है
जो वहां है जहां थोड़ी सी हवा है,थोड़ा सा आसमान है
अक्सर राह चलते कुछ रिश्ते हमें पकड़ कर ले जाते हैं वहां
जहां हम कभी नहीं गये होते
हम चीखते हैं कि नहीं जाना चाहते इस जहां को छोड़ कर
मगर एक हवशी ला पटकता है नए दरख्तों के तले
चिल्लप-पों के बीच अपनी ही आवाज लौट कर
दे जाती है दस्तक
आखिर क्यों हमें आज हर रिश्ते से डर लगता है?
रिश्ते तो रुई के फाहे है
फिर क्यों हम उन्हें नासूर समझ कर ठुकरा देते हैं?
शायद यह समय ही ऐसा है कि-
‘हमें अपनी ही परछाईं से डर लगता है’
बदहवास से हम घूमते हैं नंगे पांव
शीशे की दीवारों में अपना माथा लटकाए
हम टहलते हैं सिर्फ अपने पुरवे की ओर
अजीब सी खलल मथ डालती है
और उसकी तपिश में हम सोचते हैं-
काश! कोई अपना भी होता !
चन्द्रकान्त सिंह
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नज़रें
सरोकार छूट जायें
नज़रें बदलती हैं
रास्ते बदल जायें तो
सूरतें बदलती हैं
मुलाक़ात फिर हो जाए
शायद किसी मोड़ पर
नीयतें आज तो
बदलने को मचलती हैं
हट गयीं जो बंदिशें
खुल गए हैं रास्ते
ज़रूरारें तो आज सभी
किसी और रुख फिसलतीं हैं
दिन हवाएं हो गए
और बंधनों के रास्ते
जज्बात की आंधी कहीं
मोम सी पिघलती है
देख कर पहचान पाएं
ये ताब नहीं रही उन में
पहचान कर भी देख जाएं
मजबूरियां बदलतीं हैं
सरोकार छूट जायें
नज़रें बदलतीं हैं
रास्ते बदल जायें
सूरतें बदलतीं हैं
कमलप्रीत सिंह
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किसी से दर्द का रिश्ता होता है
किसी से दर्द का रिश्ता होता है,
किसी से प्यार का रिश्ता होता है,
फर्क क्या है, दोनों में
क्या है, अन्तर
‘रिश्ता’ तो होता है|
किसी को याद करते है, जखम जैसे
किसी को याद करते है, दवा जैसे
फर्क है, कुछ तो बोलो
बतलाओ क्या है, अन्तर
याद तो करते है दोनों को ही|
कोई दिल में रहता है, दुश्मन की तरह
कोई दिल में रहता है, दोस्त की तरह
कुछ भी फरक नही इसमे|
ना ही है कोई अन्तर|
दिल में तो रहते है दोनों ही|
याद करते है, सोचते है सबको
एक साँस से…. दूसरी साँस तक
और फिर अन्तिम साँस तक|
तानाबाना बुनते रहते है, रिश्तों के
सभी एक दुसरे के पूरक
इसके बिना वो नही, उसके बिना ये नहीं
सब एक ही माला के मोती
कोई सुंदर, कोई बदसूरत
कोई कठोर, कोई नरम
कोई कड़वा, कोई मधुर
फर्क क्या है? इसमे कुछ
क्या है? कुछ अन्तर
‘रिश्ता’ तो सबसे है
यादें तो सबसे जुड़ी है,
कुछ भयानक, कुछ सुंदर
इसके बिना वो नहीं, उसके बिना ये नहीं|
मेनका कुमारी