स्पेशल डेस्क। मां, बच्चे के आगे-पीछे दौड़ती, उसकी फरमाइशें पूरी करती। कभी लड़ती, कभी डांटती और फिर दुलार करती मां। रात को लोरी सुनाकर सुलाती मां, सुबह हाथ फेर कर उठाती मां। हमने और आपने मां की यही कल्पना देखी और जी है। लेकिन एक मां ऐसी जो अपने बच्चे से प्यार तो बहुत करती है लेकिन उसकी हर फरमाइश पूरी करने में असमर्थ है। बच्चे की शरारतें बैठकर देखती है लेकिन उसके आगे-पीछे नहीं दौड़ती। बच्चा गिर जाए तो उसे उठाने के लिए भी धीरे-धीरे खाट से उठती है। ठीक हमारी दादी-नानियों की तरह। लेकिन आपको बता दें कि यह मां है बच्चे की न कि कोई दादी नानी। अब यह बात और है कि मां की उम्र 75 साल है!
अब वो मां है
राजो देवी पांच साल पहले मां बनीं। ऐसा नहीं कि इससे पहले उन्होंने कोशिश नहीं की। शादी के 55 साल बच्चा पैदा करने की नाकाम कोशिशों में बीत गए। लेकिन आईवीएफ तकनीक की मदद मिली और दो घंटे में ही उम्मीद आसमान छू गई। राजो देवी ने गर्भ धारण किया, नौ माह अपने बच्चे को कोख में पाला और फिर सिजेरियन के बाद पैदा हुई एक खूबसूरत स्वस्थ बेटी। जन्म के एक साल बाद ओवरी में बने सिस्ट का ऑपरेशन करवाने पर, बूढ़ी हड्डियों में बची जान भी जाती रही है। अब हड्डियां सिकुड गई, वजन कम हुआ और कमर झुक चुकी है। लेकिन सर इस बात से ऊंचा है कि अब वो बांझ नहीं बल्कि मां है।
बाला राम ने औलाद की चाहत में अपनी पत्नी की छोटी बहन से ही शादी कर ली। ऐसे किस्से आम हो चुके हैं। राजो की कहानी भी यही है। राजो के चेहरे पर हल्की हंसी आयीं और फिर चेहरे पर शिकन गहराया। वो बतातीं हैं कि बच्चे की चाह में बाला राम ने उनकी छोटी बहन से शादी तक कर डाली, पर दूसरी शादी से भी बच्चा नहीं हुआ। परिवार की दो बहनें बांझ निकल गईं, इसलिए ज़रूरी था कि बच्चा हो, ज़रूरी था इसीलिए इस उम्र में भी किया।
भगवान ने भर दी झोली
हिसार के एक गांव में रहनेवाली भटेरी देवी की कहानी भी राजो जैसी ही है। भटेरी देवी ने 66 साल में बच्चे को जन्म दिया। आईवीएफ तकनीक के बाद उन्हें तीन बच्चे एक साथ हुए। एक बेटा और दो बेटियां। एक बेटी जन्म के कुछ हफ्तों बाद खत्म हो गई लेकिन दो बच्चे स्वस्थ रहे और आज स्कूल जाते हैं। 70 साल की हो चुकी भटेरी कहतीं हैं कि मुझे मां बनना था। चाहे जैसे भी। भगवान ने इतने साल नहीं सुनी लेकिन फिर झोली भर दी। अब बांझ होने का कलंक लेकर नहीं मरना होगा मुझे। मेरा बेटा मुझे आग देगा और मैं स्वर्ग जाऊंगी।
आम हो चुका है इलाज
एम्स अस्पताल में स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीरजा भाटला के मुताबिक़ 50 वर्ष की आयु तक आईवीएफ का इलाज आम हो गया है पर उसके बाद एहतियात की ज़रूरत होती है। महिला 60 साल की है तो उसकी सेहत का आकलन करना होगा, यानी गर्भ धारण करने से उनके दिल पर दबाव तो नहीं पड़ेगा? उनकी हड्डियां इतना बोझ सह सकती हैं या नहीं। डॉक्टर्स कहते हैं कि किताबों के अनुसार प्रसव के दौरान ख़ून का ज्यादा रिसाव, हाइपरटेंशन, सेरिब्रल स्ट्रोक से लेकर मौत तक का ख़तरा है, लेकिन हमारा अनुभव कहता है कि बड़ी उम्र की महिलाओं को 40-45 साल की उम्र की महिलाओं से ज्यादा परेशानी नहीं होती।
सब पैसों का खेल है
राजो देवी का आईवीएफ इलाज करवाने में बाला राम ने बैंक और साहूकार से कऱीब 2,70,000 रुपए का कर्ज लिया था, जो वो पिछले पांच साल में भी चुका नहीं पाए हैं। पर कहते हैं कि सुकून का कोई मोल नहीं, लड़की हो गई, घर बस गया, जायदाद की मालिक हो गई, वर्ना पड़ोसी ले जाते, तो किसका फायदा था।
भटेरी देवी के पति देवा सिंह भी मानते हैं कि आईवीएफ के बाद ख़र्च खूब आया और पत्नी की सेहत खराब हो गई। लेकिन पहले हम जब घर से निकलते थे, तो गांववाले सुबह मुंह नहीं देखते थे, कहते थे बेऔलादा जा रहा है और मुंह मोड़ लेते थे। भटेरी पूरे गांव में दादी के नाम से मशहूर हैं। देवा कहते हैं जब वो इलाज करवा रहे थे तो पूरा गांव उनपर हंस रहा था कि इस उम्र में मां बनने चली हैं।
भटेरी के चेहरे पर भी वैसी ही थकान है जो राजो देवी की झुर्रियों में झलकती है, पर दोनों के चेहरों पर एक ग़ुरूर है।