स्पेशल डेस्क। मुंबई के साकीनाका इलाके की एक चाल में रहने वाली प्रमिला ख़ुद पांच बच्चों की मां हैं, पर एक महिला अपने शरीर में बनने वाले अंडों का दान यानी एग डोनेशन, भी कर सकती है, इससे से वह बिल्कुल अनजान थीं। वह ये भी नहीं जानती थीं कि इस दान के लिए पैसे मिलते हैं और ये भी नहीं कि इस दान से मौत का ख़तरा भी हो सकता है। ये सब तो तब सामने आया जब उनकी बेटी, सुषमा की मौत की जांच करने वाले मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ कहा कि मौत, एग डोनेशन से जुड़ी एक जटिलता की वजह से ही हुई है।
मामला अदालत में होने की वजह से रोटुंडा अस्पताल ने इस मामले में बात करने से इनकार कर दिया, पर अदालत को ये बयान ज़रूर दिया कि दान से पहले उन्होंने सुषमा को इस प्रक्रिया से होने वाली सभी समस्याओं के बारे में बताया था और उनकी लिखित सहमति भी ली गई थी। सुषमा की मौत अगस्त 2010 में हुई थी। लंबी कार्रवाई के बाद अब अदालत ने मुंबई पुलिस से नाराजग़ी जताते हुए दोबारा केस की पड़ताल करने के आदेश दिए हैं।
यह होती है प्रक्रिया
भारत में एग डोनेशन की प्रक्रिया पर दिशानिर्देश जारी करने वाले सरकारी संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक इस प्रक्रिया से पैदा होने वाली मेडिकल जटिलताओं से कऱीब आठ प्रतिशत तक महिलाओं को मौत का ख़तरा होता है। आम तौर पर एक महिला के शरीर में हर महीने एक या कभी-कभार दो अंडे बनते हैं. एग डोनेशन के लिए महिला के शरीर में हॉर्मोन के इंजेक्शन लगाकर कई अंडे बनाए जाते हैं। फिर अंडों को महिला के शरीर से निकाल लिया जाता है। ये अंडे बाद में किसी ऐसी महिला को गर्भवती करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं जिसका शरीर अंडे बनाने में अक्षम हो।
एक बार में मिलते हैं 15 हजार रुपए
इस प्रक्रिया को अंडों का दान कहा जाता है, लेकिन भारत समेत दुनिया भर में इसे पैसों के लिए किया जाना अब बहुत आम है। भारत में अंडों का एक बार दान करने के लिए महिला को कऱीब 15,000 रुपए दिए जाते हैं। अगर महिला पढ़ी-लिखी हो, अच्छे कॉलेज की डिग्री हो या नौकरीपेशा हो तो फ़ीस बढ़कर 50,000 से एक लाख रुपए तक हो सकती है।
कोई नहीं मानता ये नियम
आईसीएमआर के साइंटिस्ट, आर एस शर्मा ने बताया कि एग दान करने वाली महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा गऱीब तबके का है और उन्हें इस प्रक्रिया की पेचीदगियों की जानकारी और समझ नहीं होती।
उन्होनें बताया, ये एक बड़ी समस्या है कि कुछ क्लीनिक एग डोनेशन से पहले अविवाहित लड़की के माता-पिता या विवाहित लड़की के पति की सहमति नहीं ले रहे, या फिर प्रक्रिया से पहले उससे पैदा होने वाली जटिलताओं के बारे में महिला को पूरी जानकारी नहीं दे रहे। भारत में अंडों के दान से पहले महिला की मां या पति से अनुमति लेने के लिए अस्पताल फिलहाल बाध्य नहीं हैं, पर डॉक्टर शर्मा ने बताया कि 2010 के विधेयक में ये प्रावधान रखा गया है।
एग डोनेशन समेत इनफर्टिलिटी के सभी इलाजों को नियमित करने के लिए आईसीएमआर ने साल 2005 में दिशा-निर्देश और वर्ष 2010 में एक विधेयक बनाया था। विधेयक अब तक संसद के पटल तक नहीं पहुंचा है।
बन गए हैं एजेंट्स
इन अंडों के ज़रिए अपना बच्चा पैदा करने की उम्मीद रखने वाले दम्पतियों की तादाद पिछले सालों में तेज़ी से बढ़ी है। दान देने वाली महिलाओं को इन क्लीनिक्स की जानकारी ज्यादातर एजेंट्स के ज़रिए ही मिलती है। 30 साल की बबीता ने छह महीने पहले अंडों का दान किया जिसके लिए उन्हें 20,000 रुपए दिए गए थे। बबीता ने तय किया कि वह और औरतों को इस इलाज के बारे में बताएंगी और एजेंट के तौर पर उन्हें क्लीनिक तक ले जाने के कऱीब 5,000 रुपए के कमीशन को अपनी रोज़ी की ज़रिया बना लेंगी।
बढ़ती जा रही है मांग
गुडग़ांव में हेल्थ केयर चला रहे बजरंग सिंह के मुताबिक एजेंट्स में जानकारी का अभाव आम है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर कम पढ़ी-लिखी महिलाएँ होती हैं। हेल्थ केयर में अंडों का दान करने वाली महिलाओं का चयन किया जाता है। महिलाओं के टेस्ट किए जाते हैं और एग डोनेशन की प्रक्रिया की जानकारी और ख़तरे बताए जाते हैं। फिर उन्हें अंडों की मांग कर रहे क्लीनिक्स के पास ले जाया जाता है जहां वे एग डोनेट करती हैं। बजरंग बताते हैं कि पिछले दो सालों में गुडग़ांव में एक से बढ़कर 10 एआरटी क्लीनिक हो गए हैं, एग डोनर की बहुत मांग है और हम जानते हैं कि एजेंट के ज़रिए आई महिला कई बातों से अनजान होती है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी बन जाती है कि कम उम्र या खऱाब सेहत वाली महिलाओं को दान देने से रोका जाए।