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सेहत के राज खोलता है हमारा ड्रेसिंग सेंस

आटफिट का फैशन और ट्रेंड से सीधा कनेक्शन है, यह तो सब जानते हैं पर क्या ऐसा हो सकता है कि हमारे ड्रेसिंग सेंस का कनेक्शन सेहत से हो!

सेहत और फैशन दो अलग—अलग चीजें हैं, लेकिन हाल ही में हुए एक शोध ने यह साबित किया है कि ड्रेसिंग सेंस का इंटरकनेक्शन हमारी सेहत से होता है. नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने इस रिसर्च को कंफर्म किया है.

रिचर्स में आए परिणामों पर नजर डालें तो पता चलता है कि डॉक्टर्स की ड्रेस पहनने से आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है. यह सुनने में अजीब लग सकता है पर इस रिसर्च को दुनिया भर के मनोवैज्ञानिक सही बता रहे हैं. तो चलिए जानते हैं आखिर कैसे और कौन से कपड़े आपकी सेहत से जुड़े हुए हैं.

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मानसिक स्थिति दर्शाते हैं कपड़े

शोध की मानें, तो एक्सरसाइज और वर्कआउट के कपड़े पहनने से मोटिवेशन मिलता है. जबकि फॉर्मल बिजनेस सूट पहनने वाले लोग खुद को ताकतवर महसूस करते हैं. हमारे आउटफिट और चॉइज बताती है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य कैसा है?

शोध बताते हैं कि किस तरह के कपड़े व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं? कपड़ों की अहमियत ही है कि अलग-अगल क्षेत्रों और अवसर के लिए कुछ खास ड्रेस कोड भी निश्चित कर दिया गया है. जैसे वर्दी, व्हाइटकोट, जिमवेयर, पार्टी वेयर, आॅफिस वेयर आदि.

ग्रूमिंग एक्सपर्ट बीनू महाजन कहती हैं कि हर फैशन और स्टाइल के पीछे एक साइकोलॉजी है. कई बार कपड़ों के चुनाव से पता लगाया जाता है कि सामने वाले व्यक्ति की सोच कैसी है अथवा वर्तमान में उसकी मानसिक दशा क्या है?

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मूड पर डिपेंड करता है कपड़ों का चुनाव

कपड़ों के चुनाव में कई सारे फैक्टर काम करते हैं. लेकिन जब हम रोजाना की जिंदगी में कपड़ों का चुनाव करते हैं, तो उसके पीछे हमारा मूड ही जिम्मेदार होता है. जैसे आपका मूड भले ही खराब हो, लेकिन जैसे ही आप पसंद की कोई ड्रेस पहनती हैं, तो मूड तुरंत बदल जाता है. इस तरह कपड़े आपकी सेहत, मूड और आत्मविश्वास पर सीधा असर करते हैं.

साथ ही कपड़ों का आपके बाहरी व्यक्तित्व पर असर पड़ता ही है. कोई व्यक्ति सबसे पहले आपको अपनी आंखों से जज करता है, फिर बातों से. ऐसे में लाजमी है कि उसकी नजर हमारे आउटफिट पर जरूर जाएगी. इसलिए शोध के अंत में कहा गया है कि कपड़े में स्मार्टनेस झलकनी चाहिए, क्योंकि आपका स्टाइल और आपका पहनावा आपकी सेहत, मूड, आत्मविश्वास, यहां तक की आपके प्रदर्शन को भी प्रभावित करता है.

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हार्ड एक्सरसाइज के लिए पहने लाल आउटफिट

2013 में नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि वर्कआउट के लिए पहना जाने वाला आउटफिट आपको और ज्यादा एक्टिव बनाता है. इसी तरह रंगों का भी असर आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है.

साल 2004 के ओलंपिक के बाद हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने खिलाडियों के व्यक्तित्व और खेल प्रदर्शन के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि लाल रंग के वर्कआउट ड्रेस पहनने से लोग हेवी वेट लिफ्ट कर पाते हैं. ह शोध जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स एंड एक्सरसाइज साइकोलॉजी में प्रकाशित किया गया था.

इसलिए हमारी तो यही सलाह है कि अगर आप भी हार्ड एक्सरसाइज करना चाहती हैं, तो लाल रंग का वर्कआउट ड्रेस पहनें.

फॉर्मल बिजनेस सूट से आता है आत्मविश्वास

सोशल साइकोलॉजिकल एंड पर्सनैलिटी साइंस द्वारा कराए गए एक शोध की मानें तो फॉर्मल बिजनेस सूट लोगों में आत्म-विश्वास तो बढ़ाता है. वे तेजी से निर्णय ले पाते हैं और ज्यादा रचनात्मक बनते हैं.

तो सलाह यही है कि आॅफिस के लिए फॉर्मल बिजनेस सूट का चुनाव करें. इससे ऑफिस में आपका प्रदर्शन सुधरता है और आत्म-विश्वास जगता है. इसलिए कहा जा सकता है कि जो लोग नौकरी पर अपने कपड़ों और पर्सनैलिटी पर ज्यादा ध्यान देते हैं, वे ज्यादा रचनात्मक होते हैं.

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अलग है फैशन साइकोलॉजी की थ्योरी

इसी तरह केलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (नॉर्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी) के प्रोफेसर एडम हाजो और एडम डी गैलिंस्की ने साल 2014 में शोध करके बताया कि डॉक्टर या पायलट का यूनिफॉर्म बुद्धिमत्ता को दर्शाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर के प्रोफेसर कैरे पाइन अपनी किताब माइंड व्हाट यू वियरः द साइकोलॉजी ऑफ फैशन में कहती हैं कि आपकी सेहत, मूड और कॉन्फिडेंस पर आपके कपड़ों का असर पड़ता है.

वैसे भी फैशन साइकोलॉजी की दो थ्योरी मानी जाती हैं. पहली मूड इलेस्ट्रेशन और दूसरी मूड इनहैंसमेंट. मान लीजिए कि किसी वजह से आपका मूड खराब है, मगर जैसे ही आप थोड़ा सज-संवरकर बाहर घूमने निकलती हैं, तो आपको अच्छा महसूस होने लगता है. यह मूड इनहैंसमेंट है. कपड़े बदलने के साथ ही मस्तिष्क को संदेश मिला कि मुझे एक्शन में आना है. यह सब फैशन की साइकोलॉजी ही तो है.

किसी भी व्यक्ति की पर्सनैलिटी का अहम हिस्सा होता है उसका ड्रेसिंग सेंस. इसलिए यदि अब आपको किसी का मूड जज करना है तो उसके ड्रेसिंग सेंस पर खास नजर रखें.

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