ट्रैवल डेस्क। दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में एक छोटा-सा गांव है हम्पी, जो कभी कालांतर में दक्षिण भारत की राजधानी कहलाता था। हम्पी में बहने वाली तुंगभद्रा नदी का नाम प्राचीन काल में पम्पा था, और इसी के नाम पर हम्पी नगर को दक्षिण के प्रसिद्ध राजा कृष्णदेव राय ने बसाया था, जो उसके विशाल साम्राज्य की राजधानी के रूप में विजयनगर कहलाती थी।
हम्पी मतंग पर्वत श्रेणियों के मध्य बसा है। 26 वर्ग किलोमीटर में फैला हम्पी गांव ग्रेनाइट की पहाडिय़ों से घिरा है। हम्पी का मुख्य आकर्षण यहां स्थित वीरूपाक्ष मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कृष्णदेव राय ने सन् 1510 में करवाया था। वस्तुत: यह एक शिव मंदिर है, जिसमें प्रतिष्ठित वीरूपाक्ष लिंग की पूजा की जाती है। मंदिर में कई छोटे देवालय भी हैं जो 12वीं और 13वीं शताब्दी के प्रतीत होते हैं। इन देवालयों में मुख्य रूप से तारकेश्वर, सूर्यनारायण, पातालेश्वर, यथामुक्ति नृसिंह तथा भुवनेश्वरी के हैं। यह मंदिर पम्पापति मंदिर के नाम से भी विख्यात है। मंदिर का मुख्य द्वार 52 मीटर ऊंचा है।
वि_ल मंदिर, भगवान विष्णु का मंदिर है। इस मंदिर को देवराय द्वितीय ने अपने शासन काल (1422-1446) के दौरान बनवाया था। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसके महामंडपों के स्तंभों को यदि किसी पत्थर के टुकड़े से बजाया जाए तो इसमें से संगीत के स्वर फूटते हैं। इस मंदिर में रखा ‘गरुड़ रथÓ आकर्षक है, जो ग्रेनाइट के पत्थर से निर्मित है। रथ में लगे पत्थर के पहिए भी आसानी से धुरी पर घूम सकते हैं।
हम्पी बाजार में स्थित भव्य कृष्ण मंदिर है। सन् 1513 में बने इस मंदिर में पूजा का प्रावधान नहीं है। यहां से और आगे चलने पर ग्रेनाइट से बनी विख्यात लक्ष्मी-नरसिंह की सात मीटर ऊंची प्रतिमा है, जिसे महाराजा कृष्णदेव राय ने 1528 ई. में बनवाई थी। यह प्रतिमा एक विशाल ग्रेनाइट पत्थर को तराश कर बनाई गई है। पास में ही एक तीन मीटर ऊंचा शिवलिंग भी गर्भगृह में देखने योग्य है।
यहां पंद्रहवीं शताब्दी में बनाया गया हजाराराम मंदिर भी दर्शनीय है, जिसकी दीवारों पर रामायण के विभिन्न दृश्यों को गढ़ाई करके उकेरा गया है। मंदिर के निकट बिखरे खण्डहरों में मदानज़ महल के अवशेष भी हैं। इनमें से एक दशहरा टिबा, 12 मीटर ऊंचा तीन मंजिला चबूतरे की भांति है, जहां कभी दशहरा के दिन महाराजा सिंहासन पर विराजते थे।