धर्म डेस्क। होली रंगों का उल्लास है, उत्सव है, पर्व है। एक दूसरे को एक दूसरे में रंग देने का नाम है होली। तेरा रंग तेरे अंग और मेरा रंग तेरे अंग लगने का नाम है होली। सारे बैर और बुराईंयों को प्रेम को दोस्ती के रंगों में रंग देने की उमंग है होली। डूब जाने और रंग में सराबोर हो जाने का नाम है होली। होली मनाने के ढंग भले ही सबके अलग-अलग हों लेकिन उल्लास एक ही है।
देश में सबसे ज्यादा बरसाने, वृंदावन और मथुरा की होली फेमस है। लोग यहां दो महीने पहले से रंग-गुलाल उड़ाने शुरू कर देते हैं। होली आते-आते तक एक दूसरे के चेहरे तक पहचानना मुश्किल होता है। आइए जानते हैं इस रंगोत्सव के बारे में…
वृंदावन की होली
यहां की होली भूलाये नहीं भूलती। वृंदावन में एकादशी के साथ ही होली प्रारम्भ हो जाती है। एकादशी के दूसरे दिन से ही कृष्ण और राधा से जुडे सभी मंदिरों में होली का आयोजन प्रारम्भ हो जाता है। एकादशी के दुसरे दिन ल_मार और फूलों की होली खेली जाती है। फूलों की होली में ढेर सारे फूल एकत्रित कर एक दूसरे पर फेंका जाता है। साथ ही राधे- राधे की गूंज के बीच आसमान से होली पर बरसते पुष्पों का नजारा द्वापर युग का स्मरण करा देता है।
वृंदावन में बांके बिहारी जी की मूतिज़् को मंदिर से बाहर रख दिया जाता है। मानो की बिहारी जी होली खेलने स्वयं ही आ रहे हो, यहां की होली सात दिनों तक चलती है। सबसे पहले फूलों से, गुलाल से, सूखे रंगों से, गीले रंगों से सबको अपने रंग में डूबों देने वाली होली। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की छटा अनोखी होती है. अपने आराध्य के साथ होली खेलने के लिए लोग कई घंटों तक लाईन में लगे रहते है।
बरसाने की लठमार होली
बरसाने की होली इसलिये भी प्रसिद्ध है, क्योकि श्री कृ्ष्ण की प्रेमिका राधा बरसाने की थी। और होली और श्री कृ्ष्ण का संबन्ध बहुत पुराना है। इसलिये होली की बात हो, और कान्हा का नाम न आये, ये कैसे हो सकता है यह होली विदेशों तक प्रसिद्ध है।
बरसाने की लठमार होली जिसमें गुजरियों के ल_ों से पुरुष बचने का प्रयास करते है। लठमार होली खेलने से पहले इन पुरुषों को खिलाया-पिलाया जाता है, इनकी सेवा की जाती है। फिर इन पर ल_ों से प्रहार किया जाता है, सर पर पगडी बांधे, हाथ में थाल नुमा ढाल से अपने को बचाते ये, अपने पर होने वाले ल_ों के मार से बचाते है।
ढाल और लठों के इस खेल में यह ध्यान रखा जाता है कि कहीं इनको चोट न लग जायें, ऐसी होती है, बरसाने की लठमार होली। साथ ही किसी अप्रिय हादसे से बचने के लिए बड़े मैदान में होली का आयोजन किया जाता है। यहां पर होली का मजा पूरे एक हफ्ते तक लिया जा सकता है। बरसाने कि इस ल_्मार होली में लोग नाचते और ठिठोली करते नजर आते है। श्री राधे-राधे की जय-जयकार, जिसमें उत्साह और जोश से होली की मस्ती भरी होती है। सभी एक दूसरे पर खूब रंग डालते है। इस पानी की एक बूंद पाने के लिये कृ्ष्ण श्रद्धालुओं में होड़ लग जाती है।
मथुरा की होली
बरसाने की ल_मार होली के बाद मथुरा की बलदेव (दाऊजी) में होली खेली जाती है. कपडे के कोडे बनाकर ग्वालबालों पर गोपियां वार करती है। ब्रज धाम की असली होली का मजा यहीं लिया जा सकता है. यहां स्थित हर राधा कृष्ण के मंदिर में अलग-अलग दिन होली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. फूलों की होली और नृत्य मनोरम दृश्य पेश करते हैं. वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की छटा अनोखी होती है.
बीकानेर की होली
बीकानेर में एक अनोखे ढंग से होली खेली जाती है. बीकानेर में एक जगह पर डोलची होली खेली जाती है. डोलची चमडे के बतज़्न को कहते है, जिसमें पानी भर कर पीठ पर लाद कर पानी ढोने के काम में लिया जाता है. यह होली बीकानेर के हशाज़् चौक पर आयोजित की जाती है. इस होली को देखने के लिये हजारों की तादाद में लोग यहां आते है.
बीकानेर की इस होली को खेलने के लिये डोलची में रंगीन पानी के साथ साथ स्नेह का गुलाल भी मिलाया जाता है. इसके बाद स्त्रियां इसे भर कर पुरुषों की पीठ पर जोर से मारती है. मार की गूंज दूर तक जाती है. होली की इस परम्परा का इतिहास करीब चार सौ साल पुराना है.
इसके अलावा होली के अवसर पर बीकानेर में स्वांग रचे जाते है. अथाज़्त स्वांग बने लोग आपको यहां जगह- जगह देखने को मिल जायेगें. यह स्वांग का आयोजन आठ दिनों तक चलता है. कोई भगवान भोले नाथ बना बैठा है, तो किसी ने विष्णु जी का रुप लिया हुआ है.
पंजाब की होली
पंजाब में आनंदपुर साहब में होली मोहल्ला प्रसिद्ध है. इसे राम की होली, कृ्ष्ण की होली, राधा की होली और बनारस में भगवान शिव की होली कही जाती है. पंजाब में होली के अवसर पर होली मोहल्ला आयोजित किया जाता है.
बनारस की होली
बनारस में एकादशी तिथि के दिन से ही अबीर-गुलाल हवा में लहराने लगते है. इस दौरान जगह- जगह पर होली मिलन समारोहों की धूम होती है. जहां गुलाल लगा सभी एक -दूसरे से गले मिलते है. बनारस की होली पर अभी तक समय की धूल नहीं चडी है. युवकों की टोलियां फाग के गीत गाती, ढोळ, नगाडों की थाप पर नाचती नजर आती है.
यहां की होली की परंम्परा के अनुसार बारात निकाली जाती है. जिसमें दुल्हा रथ पर सवार होकर आता है. बारात के आगमन पर दुल्हे का परम्परागत ढंग से स्वागत किया जाता है. मंडप सजाया जाता है. सजी धजी दुल्हन आती है. मंडप में दुल्हा दुल्हन की बहस होने के साथ बारात को बिना दुल्हन के ही लौटना पडता है. इस प्रकार यहां एक अलग तरीके से होली मनाई जाती है।