स्पेशल डेस्क। पैरेंट्स के बीच विवाद और आरोप-प्रत्यारोपों की झड़ी लगी थी। नौबत हाथापाई तक पहुंच गई। बेटा दिव्य कुछ समझ पाता इसके पहले ही पिता ने अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर निकाली और हवाई फायर कर दिया। पिता की गालियां सुनने से तो नहीं लेकिन रिवाल्वर की धांय से दिव्य का दिल दहल गया। वह जोर से चिल्लाया मां….। शुक्र था कि जान-माल का नुकसान नहीं हुआ। लेकिन वहां फिर भी कुछ ऐसा था जो हमेशा के लिए खो गया, वह था दिव्य का बचपन। उसकी हंसी….! दिव्य दिल्ली जैसी मैट्रो सिटी में रहने वाला 10 साल का बच्चा है। वह कोई अकेला नहीं है जो परिवार में होने वाले ऐसे वाक्यों का जीवन्त गवाह बना है बल्कि ऐसे कई मासूम गवाह हमारे आपके घरों में रह रहे हैं। जो रह तो रहे हैं लेकिन अपनों के दिए दर्द के साए के तले।
मां नहीं रखना चाहती बेटे को
कुंज विहार निवासी प्रथमेश ने झगड़े के बाद पत्नी सुदीपा से तलाक ले लिया। प्रथमेश ने एक बेटी और दो बेटे अपने पास रख लिए। इसके बाद सुदीपा ने दूसरी शादी कर ली। प्रथमेश ने भी दूसरा विवाह किया और अब बच्चों को सुदीपा के पास छोड़ दिया है। सुदीपा ने बाल आयोग को सूचित किया कि वह बच्चे को अपने पास नहीं रख सकती।
छह महीने से अपनों से दूर
शादी के महज दो साल बाद तलाक के फैसले पर पहुंचे शाहिद और शाहिदा का एक साल का मासूम बेटा बीते छह महीने से अपनी मां से अलग है। शाहिद ने उसे अपने पास रख लिया है। जबकि शाहिदा बच्चे को मांग रही हैं।
शटलकॉक न बन जाएं बच्चे
2014 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि दंपती के बीच विवाद में बच्चे शटलकॉक न बनें। लेकिन कई बच्चों की स्थिति शटलकॉक की तरह ही बनी हुई है। 2011 से 2014 के दरमियान बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पास इस प्रकार के 1114 मामले पहुंचे। एक मामले में तो बच्चे ने खुद अपने हाथ से खत लिखकर आयोग से अपने लिए न्याय की गुहार लगायी।
जब लिखा खत तो रो पड़े सब
14 साल के सुदीप ने आयोग को 2014 में खत लिखकर अपनी परेशानी बयां की थी। गोरखपुर निवासी इस बच्चे के माता-पिता ने शादी के नौ साल बाद तलाक ले लिया। पिता कार्तिक कुमार एक सरकारी महकमे में क्लर्क हैं। मां प्रीति कपड़े का छोटा-मोटा कारोबार करती हैं। तीन भाई और एक बहन में सुदीप सबसे छोटा है। बाकी बच्चे तो मां के साथ हैं, लेकिन दूसरी शादी कर चुके पिता सुदीप की कस्टडी चाहते हैं। बच्चे की तकलीफ यह है कि वह नई मां के साथ रहना नहीं चाहता।
सुदीप ने अपने खत में लिखा है है कि मां से तलाक के बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली है। वे चाहते हैं कि मैं नई मां का कहना मानूं, लेकिन मैं ऐसा क्यों करूं? जब मेरी सगी मां जिंदा है तो नई मां के साथ क्यों रहूं? झगड़ा मम्मी-पापा का था। उन्होंने ही अलग होने का फैसला किया। तब किसी ने भी मुझसे नहीं पूछा कि मैं क्या चाहता हूं। अब मैं अपनी मां के साथ ही रहना चाहता हूं। मुझे न्याय दिलाइए।
जेजे एक्ट में प्रावधान
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 (संशोधित 2006) के तहत बाल आयोग नोडल एजेंसी बनाया गया है। आयोग बच्चों की देखरेख, संरक्षण और उनके मानव अधिकारों के हनन के बारे में सुनवाई कर सकता है।
मानसिकता पर पड़ रहा बुरा असर
काउंसलर डॉ. केशव शुक्ला का कहना है कि जब पति-पत्नी का तलाक होता है तो इसका गहरा असर बाल मस्तिष्क पर पड़ता है। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास कम हो जाता है। उनमें नकारात्मकता आ जाती है।