फैशन डेस्क। फैशन के रंग हर रोज हर पल बदलते रहते हैं। यहां जो पुराना है वहीं नया बनकर उभर आता है और खूब तारीफ भी बटोरता है। ऐसा ही एक ट्रैंड जो पिछले कुछ समय से आउट हो गया था वह अब फिर रैंप पर दिखने लगा है। हम बात कर रहे हैं कि कच्छ एंब्रायडरी की। यह हैण्डमेड एंब्रायडरी फिर से फैशन ट्रैंड के चार्ट में शामिल हो गई है। फैशन में दोबारा लौटने के बाद आज हम आपको परिचय करवा रहे हैं कच्छ की एंब्रायडरी से। जो यहां कि महिलाओं के लिए न केवल रोजगार का साधन है बल्कि खुद का पहनावा भी। लेकिन कमाल की बात यह है कि उन्होंने इस ट्रेडिशनल परिधान को समय के हिसाब से मोल्ड कर न्यू लुक दिया है। आइए मिलिए कच्छ की एंब्रायडरी कला से…
गुजरात का पर्यटन जितना पॉपुलर हो रहा है उतनी ही यहां की कला भी। गुजरात के कच्छ की एंब्रायडरी भी यहां का खास आर्कषण है। हालांकि समय के साथ-साथ एंब्रायडरी करने वाले कलाकारों की कमी हुई है लेकिन इसकी गुणवत्ता आज भी जैसी की तैसी बनी हुई है।
बाजना है एंब्रायडरी का गढ़
कच्छ में एक गांव है बाजना। इसे एंब्रायडरी कला का गढ़ भी कहा जा सकता है। बाजना गांव में 30 साल पहले तक 73 परिवार कपड़ों की बुनाई करते थे। साथ ही कढ़ाई की 700 साल पुरानी एक खास कला का काम करते रहे। इस बुनकरी का नाम है टांगलिया। जानकार बताते हैं कि टांगलिया कला का उद्भव दो समुदायों से संबंध रखने वाले एक युगल के प्रति संबंधित समुदायों द्वारा किए गए बहिष्कार के कारण हुआ। इस युगल ने जो कला रची, उसने एक समुदाय का रूप ले लिया।
गुजरात के 26 गांवों में ही इस कला का वास रहा है। यहां रहने वाली डांगसिया समुदाय ही एकमात्र ऐसा समुदाय रहा है, जो इस कला की तकनीक में निपुण रहा है। इसमें बांधनी के साथ धागों से बिंदियों की बुनाई इस तरह की जाती है कि उनके उभार को महसूस किया जा सके। बुनकर सूट को इस तरह पकड़कर उभारते हैं कि उस उभार के आसपास धागा लपेटा जा सके। जरूरत पडऩे पर कूटनी से कूटते भी हैं।