मुंशी प्रेमचंद्र गंगी का सत्रहवाँ साल था, पर वह तीन साल से विधवा थी, और जानती थी कि मैं विधवा हूँ, मेरे लिए संसार के सुखों के द्वार बन्द हैं। फिर वह क्यों रोये और कलपे? मेले से सभी तो मिठाई के दोने और फूलों के हार लेकर नहीं लौटते? …
Read More »मां के लिए कविता
माँ मेरी लोरी की पोटली माँ मेरी लोरी की पोटली, गुड़ जैसी!! मिट्टी पे दूब-सी, कुहे में धूप-सी, माँ की जाँ है, रातों में रोशनी, ख्वाबों में चाशनी, माँ तो माँ है, ममता माँ की, नैया की नोंक-सी, छलके दिल से, पत्तों में झोंक-सी। माँ मेरी पूजा की आरती, घी …
Read More »प्रेम के लिए कविता
हाँ मुझे तुमसे ही प्यार है हाँ मुझे तुमसे ही प्यार है, पर तुम कहाँ हो, मुझे तुम्हारा अभी तक इंतज़ार है, हाँ मुझे तुमसे ही प्यार है, कभी सपनो से बाहर भी आया करो, मुझे अपनी अदा से तड़पाया करो, किस कदर तुम्हारा मुझ पर खुमार है, हाँ मुझे …
Read More »होली के लिए कविता
होली होली आई , खुशियाँ लाई खेले राधा सँग कन्हाई फैन्के इक दूजे पे गुलाल हरे , गुलाबी ,पीले गाल प्यार का यह त्योहार निराला खुश है कान्हा सँग ब्रजबाला चढा प्रेम का ऐसा रँग मस्ती मे झूम अन्ग-अन्ग आओ हम भी खेले होली नही देन्गे कोई मीठी गोली हम …
Read More »हिंदी की कविताएं
थके-थके से शब्द हैं तो भी थके-थके से शब्द हैं तो भी थके-थके से ही हैं शब्दों के संवाहक तो भी मैं ही नहीं एक अकेला किंतु हैं और-और भी अनेकों जिनके सीने में अंगार भरी सड़कें बर्फ से ढंके हैं द्वीप उधार बर्फ की चादर लपेट सोया है साहस …
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